द गर्ल इन रूम 105
अध्याय 17
'अभी तक नाराज़ हो? कम से कम कुछ खा तो लो, मैंने कहा। सौरभ और मैं लंच के समय चंदन क्लासेस के स्टाफ़ रूम में थे। उसने पिछले तीन दिन से मुझसे बात नहीं की थी। हमारा घर किसी शांत ऑपरेशन थिएटर जैसा लगने लगा था। चुपचाप अपना काम करने वाले सर्जनों की तरह हम भी एक-दूसरे से बात किए बिना अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी जी रहे थे। मैंने उसे उकसाने की हरसंभव कोशिश कर ली व्हिस्की, रसगुल्ला, हाई- डेफिनेशन पोर्न - लेकिन मैं उसका ध्यान नहीं खींच पाया। वह एक शब्द भी कहने को तैयार नहीं था। स्टाफरूम में दो और फैकल्टी मेंबर्स लंच कर रहे थे। वे हमसे कुछ ही दूरी पर बैठे थे।
'मैंने छोले भटूरे ऑर्डर किए हैं। एक तो खाओ, मैंने कहा । छोले-भटूरे की लाजवाब महक ने सौरभ की नाक
को हुआ, लेकिन वो टस से मस नहीं हुआ। वो अपनी पांच इंच मोटी ऑर्गेनिक कैमिस्ट्री' टेक्स्टबुक को पढ़ता रहा। ये किताब उतनी वज़नी थी कि उसको उठाकर जिम में बाइसेप कर्ल्स किए जा सकते थे। "हम दोनों की जान को कोई खतरा नहीं होगा, लेकिन कमऑन, क्या तुम भी नहीं चाहते कि हम क़ातिलों को खोज निकालें?"
"अगर कातिल सेल्फ़ी भी मशीनगन लेकर खिंचवाते हैं, तब तो हरगिज़ नहीं, सौरभ ने कहा। 'आहा, तो आखिरकार तुम बोल पड़े। यानी तुम्हारी इस मामले में दिलचस्पी बनी हुई है।' "भाई, दिलचस्पी की ऐसी की तैसी, लेकिन में नहीं चाहता कि मेरे पिछवाड़े में एक दर्जन बुलेट्स भर दी जाएं। तुम एक टेररिस्ट ऑर्गेनाइजेशन की तहकीकात करोगे? वो लोग तो मजे मजे में ही किसी को भी मार देते हैं।"
'मुझे उनकी ऑर्गेनाइजेशन में कोई दिलचस्पी नहीं है। मैं केवल इतना जानना चाहता हूं कि जारा के साथ क्या हुआ।"
"लेकिन क्यों?" सौरभ ने इतने ज़ोर से कहा कि दोनों फैकल्टी मेंबर्स मुड़कर हमारी तरफ देखने लगे।
'धीरे बोलो, ' मैंने कहा। 'भाड़ में जाओ.' उसने कहा 'मैं तो बोलना ही नहीं चाहता।'
मैं इस कहानी को खत्म करना चाहता हूं, गोलू ब्रेकअप के बावजूद में जारा के साथ यह नहीं कर पाया था। और जब वो मेरे पास लौट आना चाहती थी तो वो हमेशा के लिए चली गई और अपने पीछे इतने सारे
सवाल छोड़ गई।"
'सॉरी, इस मामले के खात्मे के चक्कर में कहीं तुम्हारा ही खात्मा ना हो जाए।' "तो रहने दो।"
"मेरी कभी कोई गर्लफ्रेंड नहीं रही तो मुझे मालम नहीं कि इस सबसे कैसे डील करना है। अच्छा ही है।' "तुमने कहा था कि तुम दिल-दिमाग से मेरा साथ दोगे, याद है?"
"भाई, दिमाग़ का इस्तेमाल करने की ज़रूरत तो तुम्हें है। नहीं तो वो लोग तुम्हारा सिर ही उड़ा देंगे। अब यह डीन की वाइफ को नाइटी में देखने भर का मामला नहीं रह गया है। अब ये तारीख़-ए-जुम्मा का मामला है।'
"तेहरीक-ए-जिहाद, मैंने उसे दुरुस्त किया।
"जो भी हो। सेफ से मिली सभी चीजें राणा को सौंप दो और उसे अपना काम करने दो।
'जैसे कि राणा कुछ करेगा? वह तो यही चाहता है कि लक्ष्मण ही जेल में सड़कर मर जाए।'
"तो यह लक्ष्मण की बदनसीबी है। और ये हमारे देश की बदनसीबी है कि यहां पर इस तरह से काम होता है। लेकिन इसका हमसे कोई सरोकार नहीं है।'
मैं समझता है। तो कैसा रहेगा अगर हम यह सब पुलिस को दे दें, लेकिन अपने स्तर पर भी चुपचाप
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